संकटग्रस्त श्रेणी के पक्षियों की शरण स्थली बना मोरेल बांध

मोरेल बांध में पिछली बार 8 फिट पानी रिजर्व होने से बांध के वेस्ट वियर और डाउन स्ट्रीम में इन दिनों नाइट हेरोन के समूह ने अपना प्रजनन स्थल बनाया है। पक्षी विशेषज्ञ प्रोफेसर सुभाष पहाड़िया ने बताया कि पिछले 5 साल में यह पहली बार देखा गया है कि नाइट हेरोन के लगभग 120 के करीब घौंसले दिखाई दिए है ।कुछ घोंसलों में इनके चूजे भी दिखाई दिए है और अधिकांश में अंडे भी है। ब्लैक क्राउंड नाईट हेरोन या ब्लैक कैप्ड नाइट हेरोन के नाम से जाना जाने वाला यह पक्षी नदियों, नालों, जोहड़ों, झीलों व खेतों आदि पानी वाली जगहों के आस-पास देखा जा सकता है। विशिष्ट बगुलों में भी ये शामिल हैं। इसे अफ़्रीका का काला बगुला, हाइड्रैनासा या मेलानोफ़ॉक्स के नाम से भी जाना जाता है। ये उत्तरी अमेरिका में व्यापक रूप से फैला हुआ एक छोटा हरा और भूरे रंग का पक्षी है और इसे मछली को आकर्षित करने के लिए पानी की सतह पर चारा गिराने की अपनी आदत के लिए महारत हासिल है। नाइट हेरोन का प्रजनन का समय उत्तर भारत में अप्रैल से सितंबर तथा दक्षिण भारत में दिसंबर से फरवरी तक होता है। जैसे ही नर पक्षी मादा के साथ जोड़ा बनाता है। नर घोंसले की सामग्री जैसे तिनके व वनस्पति आदि लाता है तथा मादा पक्षी उसे व्यवस्थित कर घोंसला बनाती है। प्राय ये पेड़ पर ही घोंसला बनाते है लेकिन मोरेल बांध की डाउन स्ट्रीम में जिसमे खाई है तथा सघन पटेरा व मूंज वनस्पति होने के कारण सुरक्षा की दृष्टि से इन्होंने समूह में अपने घोंसले बनाए हुए है। मादा पक्षी तीन से पांच अंडे देती है। नर व मादा मिलकर चूजों को पालते हैं। प्रोफेसर सुभाष पहाड़िया ने बताया कि ये पारिस्थितिकी तंत्र के लिए शुभ संकेत है कि बांध के निचले भाग में दलदली भूमि चारो और से पानी से घिरी होने के कारण और बड़े पेड़ पौधों की अधिक संख्या होने के कारण अनुकूल वातावरण उपलब्ध है।

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