दशरथ मांझी

दोस्तों स्वागत है आपका डिजिटल आवाज में, पॉजिटिव मंडे की सीरीज में हम अपने दर्शकों के लिए एसी स्टोरी लेकर आते हैं जिसमें विलेन की भूमिका में ख़राब आर्थिक हालत , शारीरिक अक्षमता और संसाधनो की कमी होते है, पर स्टोरी का नायक अपने आपको हर परिस्थिति से निकाल कर दुनिया में एक मिसाल बनता है। 
आज की कहानी के मुख्य नायक है – दशरथ मांझी। 
यह  motivational story उस इंसान की है जिसने अपने बुलंद हौसले ओर  दृढ़ संकल्प के कारण असंभव काम को संभव कर दिखाया। जी हाँ , यह कहानी भारत के माउंटेन मैन कहे जाने वाले दशरथ मांझी की है जिन्होंने अपने बुलंद  हौसलों की बदौलत महज एक छेनी और हथौड़ी से  पूरे पहाड़ को काटकर एक रास्ता बना दिया। 

दशरथ मांझी जिस गांव में रहते थे वहां से पास के कस्बे में जाने के लिए एक पूरे पहाड़ को पार करना पड़ता था तथा उस पहाड़ के पूरे चक्कर लगाने के बाद ही दूसरे तरफ पहुंचा जा सकता था। 

दशरथ मांझी के गांव  लोगो की  छोटी सी भी जरूरत इस पहाड़ को पार करने के बाद ही पूरी होती थी। एक दिन जब दशरथ मांझी पहाड़ी इलाके में अपना काम कर रहे थे और हर दिन की तरह उनकी पत्नी फाल्गुनी देवी  उस दिन भी उन्हें जब  दोपहर का खाना देने जा रही थी तब दुर्भाग्यवश अचानक पैर फिसलने के कारण वह एक पहाड़ी दर्रे में जा गिरती हैं और तत्काल इलाज न मिलने के कारण उनकी मृत्यु हो  जाती है।

फाल्गुनी देवी की मौत का सबसे बड़ा कारण वह पहाड़ था जो दशरथ मांझी के गांव और शहर के  बीच दीवार बनकर खड़ा था। इसी पहाड़ के कारण फाल्गुनी देवी को अस्पताल ले जाने में ज्यादा समय लग गया और उनकी मृत्यु हो गई क्योंकि गांव से शहर के जाने के लिए पूरे पहाड़ के चक्कर लगाने पड़ते थे। 
अपनी पत्नी की मृत्यु ने दशरथ मांझी  को पूरी तरह झकझोर के रख दिया ओर वह सोच में पड़ गए हैं कि कैसे एक पहाड़ के बाधा बनने के कारण वह अपनी पत्नी को नहीं बचा सके।
एक और जहाँ लोग एसे समय गम में डूब कर नशे का सहारा लेने लगते है, उस समय दशरथ मांझी ने एक फैसला लिया जिसने ना केवल उनकी बल्कि पूरे गाँव वालों की किस्मत बदल कर रख दी। 
जी हाँ फैसला था – पहाड़ काटने का।
माझी ने यह फैसला लिया कि वे उस पहाड़ को ही काट डालेंगे  जिसके रास्ता रोकने  के कारण उनकी पत्नी की दर्दनाक मौत हो गई थी। 
पर उनके पास ना कोई संसाधन थे ना ही कोई मशीन, ना सरकारी सहायता। उन्होंने किसी चीज को अपने बुलंद हौसलों के सामने नहीं आने दिया और छेनी और हथोडी की मदद से पहाड़ काटना शुरू किया। 
जब गांव वालों ने पहली बार उन्हें मात्र एक छेनी और हथौड़ी से पहाड़ को तोड़ते हुए देखा तो लोग उन पर हंसने लगे और उनका मजाक उड़ाने लगे कईयो ने तो उन्हें  पागल भी कहना शुरू कर दिया था। लोग कहते हैं कि ये अपने बीवी के मौत के सदमे से पागल हो गया है जो इतनी छोटी सी छेनी और हथौड़ी से पहाड़ को तोड़ने में लगा हैं। इन सबके बावजूद दशरथ मांझी अपने काम में जुटे रहे ।
इसी तरह दिन बीतते चले गए ,कई महीने गुजर,कई  मौसम आए और चले गए अब तो साल भी बितने लगे थे क्या गर्मी, क्या बरसात और क्या ठंड इन सब की न परवाह करते हुए दशरथ मांझी  सिर्फ अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए कठिन परिश्रम करते रहें। उनका  बस एक ही लक्ष्य था उस पहाड़ को काटकर रास्ता बना देना ताकि जो उनके साथ हुआ वह फिर किसी और के साथ ना हो।
अपने दृढ़ संकल्प  और बुलंद इरादों  का परिचय देते हुए मांझी ने लगातार 22 साल की कठिन परिश्रम और मेहनत के बाद पहाड़ में 360 फुट लंबा, 25 फीट गहरा 30 फीट चौड़ा रास्ता रास्ता बना दिया। 

दशरथ मांझी द्वारा बनाए गए इस रास्ते के कारण गया के अन्नी से वजीरगंज दूरी मात्र 15 किलोमीटर रह गई साथ ही जो पहले पहाड़ को चक्कर लगाकर जाने के बाद 80 किलोमीटर की दूरी पड़ती थी वह मात्र 3 किलोमीटर की ही रह गई।  दशरथ मांझी के इस फैसले  का पहले तो मजाक उड़ाया गया पर उनके इस प्रयास ने जालौर के लोगों के जीवन को सरल बना दिया। 

दशरथ मांझी जी का जीवन उन लाखों लोगों के लिए मिसाल  है  जो आज के इस कठिन दौर में कुछ बड़ा करने की चेष्टा तो करते हैं पर लगातार मेहनत नहीं कर पाते।   
जिस प्रकार दशरथ माझी  को  पहाड़ काटने में 22 साल लग गए फिर भी उन्होंने कभी हार नहीं मानी और बिना निराश  वे अपने लक्ष्य को पाने के लिए दृढ़ संकल्प के साथ कड़ी मेहनत की अंत में सफलता प्राप्त की,  ठीक उसी प्रकार यदि आप लगातार मेहनत करते रहेंगे तो आपको सफलता जरुर मिलेगी।

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