क्‍यों पड़ती है इतनी कड़ाके की ठंड…

पूरे देश में ठंड का कहर पिछले कुछ दिन में बढ़ता ही जा रहा है. ऐसे में सवाल उठता है कि कड़ाके की ठंड क्‍यों पड़ती है और हमारे मुंह से सर्दियों में भाप क्‍यों निकलती है?

तो यदि आप भी इन सवालों का जवाव जानना चाहते हैं तो दोस्तों स्वागत है आपका डिजिटल आवाज की सीरीज वैज्ञानिकी बुद्धि में, तो विडियो को बिना स्किप करे अंत तक देखते रहिये, चलिए विडियो शुरू करते हैं – 

दरअसल सर्दियों के मौसम में सूर्य की पृथ्वी से दूरी बढ़ जाती है. इससे भी ठंड और बर्फीली हवाएं चलती हैं. दरअसल, धरती सूर्य के चारों ओर परवलयाकार कक्षा में चक्‍कर लगाती है. ऐसे में हर वक्‍त पृथ्‍वी से सूर्य की दूरी एकसमान नहीं रह पाती है. चक्‍कर लगाते समय जिस समय पृथ्‍वी सूर्य से दूर चली जाती है, धरती पर सर्दियां शुरू हो जाती हैं. दूरी और बढ़ने पर कड़ाके की ठंड पड़ना शुरू हो जाती है.

पश्चिमी विक्षोभ भी भारत में ठंड की बड़ी वजह बनती है. दरअसल, पश्चिमी विक्षोभ भूमध्‍यसागर और अटलांटिक महासागर से नमी लेकर उत्‍तर भारत पहुंचती हैं. जब ये नम हवाएं उत्‍तर भारत में हिमालय से टकराती हैं तो ठंड में बर्फबारी या बारिश करती हैं. कई जगह ओले भी पड़ते हैं. इसके बाद हिमालय से चलीं बर्फीली हवाएं पूरे उत्‍तर भारत में कड़ाके की ठंड का सबब बनती हैं.

आइये अब जानते हैं कि ठंड में हमारे मुंह से क्‍यों निकलती है भाप?

सामान्‍य तौर पर जब हम सांस लेते हैं तो शरीर में कार्बन डाइऑक्‍साइड और पानी बनता है. इस प्रक्रिया में बना पानी जलवाष्प के रूप में हमारे फेफड़ों की वाष्पीकरण की प्रक्रिया के बाद मुंह या नाक के जरिये शरीर से बाहर निकलता है. हमारे शरीर का औसत तापमान 98.6 डिग्री फारेनहाइट होता है. कड़ाके की ठंड में जब हम सांस छोड़ते हैं तो इसके साथ शरीर का पानी भी बाहर निकलता है. जब यह पानी वातावरण की ठंडी हवा से मिलता है तो इसका वाष्पीकरण शुरू हो जाता है. यह जलवाष्प बाहर की ठंडी हवा से मिलने पर इकट्ठी होकर पानी की छोटी-छोटी बूंदों में बदल जाती है. इसी वजह से हमारे मुंह और नाक से सर्दियों में भाप निकलती है.

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कैप्शन – सामान्‍य तौर पर जब हम सांस लेते हैं तो शरीर में कार्बन डाइऑक्‍साइड और पानी बनता है. इस प्रक्रिया में बना पानी जलवाष्प के रूप में हमारे फेफड़ों की वाष्पीकरण की प्रक्रिया के बाद मुंह या नाक के जरिये शरीर से बाहर निकलता है.

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