Ep -20 || चक्रवात क्या हैं और कितने प्रकार के होते हैं, ये कैसे और क्यों बनते हैं? || Cyclone || चक्रवात

हवाओं का लगातार बदलता हुआ चक्र, जिसके केंद्र में निम्न वायुदाब और बाहर उच्च वायुदाब होता है, ‘चक्रवात’ या ‘तेज गोलाकार तूफान’ कहलाता है. चक्रवात बनने के मुख्य कारण हैं- तापमान बढ़ने से समुद्री सतह का गर्म होना, कोरिओलिस बल और वायुमंडल में नमी की अधिकता आदि.

पर आखिर ये बनता कैसे है? 

चक्रवात निम्न दाब के ऐसे क्षेत्र होते हैं, जिनके चारों तरफ सकेंद्रीय समदाब रेखाएं विस्तृत होती हैं और केंद्र से बाहर की ओर वायुदाब बढ़ता जाता है. जिस कारण परिधि से केंद्र की ओर पवनें प्रवाहित होने लगती हैं.

चक्रवात या साइक्लोन कम दबाव वाला क्षेत्र होता है, जिसमें हवाएं अंदर की ओर घूमती रहती हैं. चक्रवात की वजह से तूफानी हवाओं के साथ भारी वर्षा हो सकती है. उत्तरी गोलार्ध में चक्रवात वामावर्त यानि Anti-clockwise घूमते हैं और दक्षिणी गोलार्ध में दक्षिणावर्त यानि Clockwise घूमते हैं. आमतौर पर चक्रवात गोलाकार, अंडाकार या ‘V’ आकार के होते हैं. चक्रवात बनने और इसके तेज होने की प्रक्रिया को साइक्लोजेनेसिस कहा जाता है.

चक्रवात वर्षा और तापक्रम की दशाओं को प्रभावित करते हैं. इस कारण मौसम और जलवायु के निर्धारण में इनका पर्याप्त महत्त्व होता है.

अटलांटिक और पूर्वी प्रशांत महासागर में इसे ‘हरिकेन’ (Hurricanes), दक्षिण पूर्व एशिया में इसे ‘टाइफून’ (Typhoons) और ऑस्ट्रेलिया के आसपास हिंद महासागर और पश्चिमी प्रशांत महासागर में इसे ‘चक्रवात’ (Cyclone) ही बुलाया जाता है.

चक्रवात केवल पृथ्वी पर ही नहीं होते हैं, बल्कि ये मंगल, बृहस्पति और नेपच्यून (वरुण) जैसे अन्य ग्रहों पर भी देखे जाते हैं. ‘द ग्रेट रेड स्पॉट’ बृहस्पति पर चल रहा तूफान या चक्रवात है, जो करीब 340 सालों से चल रहा है. इसी प्रकार नेपच्यून के दक्षिणी गोलार्ध में ‘ग्रेट ब्लैक स्पॉट’ देखा गया है.

अब जानते है कि चक्रवात कैसे बनते हैं-

जिस स्थान पर सूर्य की किरणें लंबवत या सीधी पड़ती हैं, उस स्थान का तापमान बढ़ जाता है. जब सूर्य की तेज किरणों के कारण सागर के ऊपर चलने वाली हवाएं गर्म हो जाती हैं, तो वे हवाएं गर्म होकर तेजी से ऊपर उठने लगती हैं और अपने पीछे एक कम दबाव का क्षेत्र (Area of ​​Low Pressure) छोड़ जाती हैं (यानी यहां वायुदाब कम हो जाता है). हवा के ऊपर उठ जाने के कारण वहां एक खालीपन पैदा हो जाता है.

अब इस खाली जगह को भरने के लिए आसपास की ठंडी हवाएं तेजी से दौड़कर आती हैं, लेकिन पृथ्वी के अपनी धुरी पर लट्टू की तरह घूमने के कारण इन हवाओं का रुख अंदर की तरफ मुड़ जाता है और फिर हवा तेजी से घूमती हुई ऊपर की ओर उठने लगती है. यह सिलसिला चलता रहता है.

जब हवा की स्पीड बहुत तेज हो जाती है, तो यह घूम-घूमकर एक बहुत विशाल आकार का घेरा बनाने लगती है. इन हवाओं की रफ्तार सैकड़ों किलोमीटर प्रति घंटा से ज्यादा होती है.

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