राजस्थान में पार्टियां खेल रही है राजपूत पॉलिटिक्स गेम! आखिर क्या है समाज का मूड़

राजस्थान में राजपूत समाज सियासत का केंद्र बिंदु है….. एक जमाने तक राजस्थान या राजपूताना में राजे रजवाड़ों का ही शासन था………….. आजादी के बाद लोकतंत्रात्मक राज्य में राजपूत समाज के नेताओं ने चुनाव लड़कर विधानसभा और लोकसभा तक पहुंचने का काम किया……… इनमें राजा और महाराजा भी रहे….. पिछले विधानसभा चुनावों में राजपूत समाज से बीजेपी ने 26 प्रत्याशी चुनावी समर में उतारे और विजयी हुए महज 10……….वही कांग्रेस ने 16 उतारे और 8 जीते…… दोनों प्रमुख दलों ने 42 राजपूत चेहरों को टिकट दिए थे………… राजस्थान की राजनीति में ऐसा कहा जाता है जनसंघ और बीजेपी की जड़ों को जमाने में राजपूत वर्ग के नेताओं का विशेष योगदान रहा……….. एक समय ऐसा भी था जब राजपूत वर्ग को बड़ी संख्या में टिकट दिये जाते थे……. लेकिन बीते तीन विधानसभा चुनावों की बात करे तो 2008 से लेकर 2018 तक के चुनावों में तो राजपूत चेहरों को टिकट देने में बीजेपी ने कमी रखी………… 2008 के विधानसभा चुनावों में जहां 29 राजपूत नेताओं को टिकट दिए थे तो 2018 के चुनावों में 26 राजपूतों को ही बीजेपी का टिकट मिला………….
2013 में बीजेपी से कुल 28 राजपूत ​चेहरे मैदान में उतारे गए, उन में से 23 ने जीत दर्ज की….. पर 2018 के चुनाव में समीकरण बिल्कुल बदल गए और बीजेपी द्वारा उतारे गए 26 राजपूती चेहरों में से केवल 10 ने ही जीत हासिल कि…..जिन 26 राजपूतों में 16 हारे उनमे से ज्यादातर पहले कांग्रेसी थे। और कांग्रेस द्वारा उनके ही सामने दूसरे राजपूत चेहरों को उतारने की वजह से इन 16 उम्मीदवारों को हार का सामना करना पड़ा। कोलायत,शेरगढ़,बाली ऐसी ही सीटें रही.

वही बात करें कांग्रेस की तो कांग्रेस ने 2008 के चुनावों में 19 राजपूत नेताओं को टिकट दिए इनमें से सात जीते…… 2013 के चुनावों में 14 राजपूत चेहरे कांग्रेस ने उतारे और विजय मिली केवल 2 को….. एक दर्जन राजपूत चेहरे हार गए. बीते विधानसभा चुनावों में yani ki 2018 के चुनाव में हाथ के निशान पर 16 चेहरे उतरे और इनमें से 8 को जीत और 8 को हार मिली.

इनके अलावा निर्दलीय और अन्य दलों से भी दो राजपूत बीते चुनाव में जीते थे.

2018 में बीजेपी से बीकानेर पूर्व से सिद्धि कुमारी…… चूरू से राजेंद्र राठौड़…..विद्याधर नगर से नरपत सिंह राजवी……… आसींद से जब्बर सिंह सांखला जो कि रावणा राजपूत से है….. बाली से पुष्पेंद्र सिंह….. सिवाना से हमीर सिंह भायल……. रानीवाड़ा से नारायण सिंह देवल….. चित्तौड़गढ़ से चंद्रभान सिंह आक्या…. कुंभलगढ़ से सुरेंद्र सिंह राठौड़…. लाडपुरा से कल्पना देवी….. आसींद से रावणा राजपूत जब्बर सिंह सांखला जीते थे…..।

वही पर कांग्रेस में कोलायत से भंवर सिंह भाटी….. श्रीमाधोपुर से दीपेंद्र सिंह शेखावत…. सिविल लाइन से प्रताप सिंह खाचरियावास……… बाड़ी से गिरिराज सिंह मलिंगा………. शेरगढ़ से मीना कंवर………. वल्लभनगर से गजेंद्र सिंह शक्तावत……. सांगोद से भरत सिंह कुंदनपुर….. जोधपुर शहर से रावणा राजपूत मनीषा पवार ने जीत दर्ज की थी…..

अब देखने वाली बात ये है कि इस बार के चुनाव में राजपूत चेहरों को पार्टियों द्वारा और उसके बाद जनता द्वारा तरजीह मिल पाती है। सियासी गलियारों में इन मुद्दो पर खासी चर्चाएं हैं. राजपूत समाज दोनों ही प्रमुख पार्टियों से मांग कर रहा हैं…. इस बार समाज ने पिछले विधानसभा चुनाव से ज्यादा प्रत्याशियों को टिकट की मांग रखी है.

प्रताप फाउंडेशन, जो कि राजपूत समाज का एक बड़ा संघठन है। ने मांग रखी है की इस विधानसभा चुनाव में राजपूत समाज का प्रतिनिधित्व बढ़ाया जाए. प्रताप फाउंडेशन संयोजक महावीर सिंह सरवड़ी ने भाजपा प्रभारी अरुण सिंह तक अपनी बात पहुंचाई है….. और अभी तक की जारी हुई सूची पर नाराजगी जताई है…. वही पर आगामी सूचियों में राजपूत समाज का ध्यान रखने की बात भी कही है…… उधर कांग्रेस में भी धर्मेन्द्र राठौड़ के मार्फत शीर्ष स्तर तक पहुंचाई गई है….. धर्मेन्द्र राठौड़ के जरिए कांग्रेस और प्रताप फाउंडेशन दोनों संपर्क में है…

पिछले विधानसभा चुनावों के समय आनंद पाल…. चूतर सिंह फैक्टर….. राजमहल पैलेस होटल….. पद्मावती फिल्म….. मानवेंद्र सिंह का कांग्रेस में जाना…. समेत कई मसले ऐसे रहे जब राजपूत समाज ने कांग्रेस का साथ दिया था…… आनंद पाल जाति से रावणा था……… लेकिन राजपूत संगठन एनकाउंटर के खिलाफ खड़े हो गए…….. राजपूत – रावणा वर्ग एक जाजम पर आ गए….. नतीजा यह निकला कि शेरगढ़, कोलायत जैसी सीटों पर समाज ने बीजेपी के बजाय कांग्रेस के राजपूत को वोट दिया…….. भाटी, राव राजेंद्र सिंह, बाबू सिंह राठौड़, राजपाल सिंह शेखावत सरीखे चेहरे चुनाव हार गए…… जो जीते वो अपने दम पर……… राजस्थान में जमींदारा प्रथा के खिलाफ जब कांग्रेस खड़ी हुई तब राजपूत राजे रजवाड़ों का झुकाव विपक्षी दलों की और रहा………. ऐसे में इस बार प्रमुख पार्टियों को टिकट वितरण में जातीगत समीकरण को देखते हुए रणनीति बनाने की जरूरत है। अब देखने वाली बात ये होगी कि इस चुनाव में जातीगत समीकरण ​कौनसी पार्टी को पास और कौनसी पार्टी को फेल करेगा……
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